श्रीविद्या तंत्र योग

मुफ्त में सिखाया जाता है

निर्धारित दिनचर्या के अभाव में गृहास्तों को साधना में आवश्यक लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। नाडी शुद्धी के अभाव में प्राणायाम का अनुभव कठिन हो जाता है। मेरु दण्ड श्वास प्रक्रिया के अभाव में मंत्रोच्चारण से होने वाले आंतरिक ध्वनिस्पंदन अनुभव नहीं हो पाता । इसी कारण तंत्र के उपलब्धियों को अनुभव करने हेतु क्रमशः प्रगती आवश्यक है। आइए जान लेते हैं तंत्र योग साधना क्रम।

पूर्वांग अभ्यास

दिनचर्या (नित्य क्रम), तत्त्व शुद्धी / पंच अमर योग, नाडी एवं प्राण योग, शड़ाधार एवं षोडश आधार , अष्ट कुंभक, दश मुद्रा और अंत में प्रणव और पंचाक्षरी साधना

श्रीविद्या प्रारंभिक क्रम

गुरु , गणपती एवं इष्ट देवता साधना, शड़ाधार साधना, पर प्रसाद विद्या, देवी बाला – आंतरिक जप, पूजा, होम & तर्पण (त्रिपुर बाला विद्या (त्रयाक्षरी), बाला परमेश्वरी विद्या (शड़ाक्षरी) & योग बाला विद्या (नवाक्षरी))

श्रीविद्या माध्यमिक क्रम

व्योम पंचक विद्या , ललिता साधना ( पंचदशी विद्या आधारित) , वामकेश्वरी विद्या & चन्द्र विद्या । चन्द्र विद्या में मेरु प्रस्थारा , कैलाश प्रस्थार, एवं भू प्रस्थार सिखाया जाता है जिसमें नित्या से संबंधित चन्द्र कला के अंगों का भी समावेश है।

श्रीविद्या उच्च शिक्षा क्रम

यहां षोडशी विद्या का प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें समावेश है इडा और पिंगला के 16 चक्र 16 नित्याओं के लिए , सुषुम्ना के 28 चक्र षोडशी के लिए। अंत में काम कला विद्या का प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें निम्नलिखित तीन विद्याओं का समावेश है

(जाग्रत – जाग्रत )- जिसका अंग विद्या परा विद्या है
(जाग्रत – स्वप्न) – जिसका अंग विद्या पंच कूट पंचमी विद्या है
(जाग्रत – सुशुप्ती) – जिसका अंग विद्या पंच आकाश विद्या है

श्रीविद्या के तीन श्रेणी केवल कोई लिखित अभ्यास क्रम ना होकर , साधकों की आंतरिक देह अनुसंधान की गहरी परिपक्वता पर आधारित वर्गीकरण है । कई साधकों को, माध्यमिक स्तर के आंतरिक पूजा में , जहां देह को मेरु प्रस्थार करके परिकल्पित किया जाता है अथवा प्रारंभ श्रेणी के परा प्रसाद विद्या के साधना में ही समाधी की अनुभूति हो जाती है।
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