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श्रीविद्या दीक्षा पद्धति में साधकों को तीन दीक्षा क्रम पूर्ण करना होता है जिसके पश्चात उन्हें त्रिपुर सिद्धांत और मंत्र दीक्षा का अवसर प्राप्त होता है। इसमें पहले शांभवी दीक्षा, दूसरी शक्ती दीक्षा और तीसरी मंत्री दीक्षा है जिसमें साधक का कलाशाभिशेक भी किया जाता है। साधक अभिषेक पश्चात नए वस्त्र धारण कर दीक्षा क्रम के अगले चरण में प्रवेश करता है जिसमें कई न्यासों और शुद्धिकरण क्रम शामिल हैं। इसके कुछ पहलु साधकों के आंखों पर पट्टी बांधकर किया जाता है और कुछ उनके दृष्टि समक्ष। साधकों को इसके पश्चात त्रिपुर सिद्धांत से अवगत कराया जाता है जिसमें गुरूपादुका मंत्र, और गणपती, बाला मूल मंत्र सिखाए जाते हैं। दीक्षा क्रम में होने वाले विवरण का किंचित उदहारण मात्र यहां दर्शाया गया है।
कई लोग तंत्र के परिणाम से अपरिचित एक देवता एक मंत्र साधना अपनाते हैं। एक मंत्र देवता साधना, साधक के लक्ष्य और भक्ती को भले तीव्र करता हो ,लेकिन अगर मंत्र – देवता अथवा पद्धती साधक के अनुकूल ना हो तो इसका दुष्परिणाम बहुत होता है। एक देवता एक मंत्र पद्धति मोक्ष मार्ग में चलते साधकों के और उनके निकटवर्ती जनों के जीवन में आर्थिक और स्वास्थ्य हानी पहुंचा सकती है। इसी कारणवश श्रीविद्या जैसे तंत्र पद्धती क्रम साधना का मार्ग अपनाती है जिसके चलते साधक की आध्यात्मिक परिपक्वता के आधार पर उसकी आध्यात्मिक उन्नति मार्गस्थ हो जाती है। केवल श्रीविद्या साधना में ही नहीं , बल्की भगवती के संहारक रूप ,जैसे काली की उपासना में भी तंत्र पद्धति मार्ग का प्रयोजन , उनके अंग – उपांग देवता जैसे धन काली (आर्थिक हेतु देवता), से करना उपयुक्त होता है जिससे साधना प्रागती में बाधा या क्लेश निर्माण न हो।
आज कल के नूतन गुरू न केवल विधिवत शास्त्र को अंदेखा करते है बल्कि साधकों को दीक्षा समय में त्रिपुर सिद्धांत से अवगत कराते है। अनेक गुरु तो केवल मंत्र उपदेश तक ही सीमित रखते हैं और दीक्षा प्रदान नहीं करते ताकि शिष्य के कार्मिक बोझ से बच सके। श्रीविद्या और मंत्र उपदेश दीक्षा क्रमशः किया जाता है। विधिवत, शास्त्रों अनुसार , पूजा और कलश विधी के साथ संपन्न किया जाता है। इस गहन विद्या को कई लोगों ने ऑनलाइन धंधा/ सामूहिक कार्य बनाकर रख दिया है जिसमें श्रीविद्या तंत्र से संबंधित कोई शास्त्र विधानों का आचरण किया नहीं जाता।
“श्रीविद्या तंत्र पीडम में पढ़ाए जाने वाले मुफ्त श्रीविद्या शिक्षा में जो साधक कम से कम एक वर्ष काल जुड़ा हो और जिसकी परिपक्वता सिद्ध हो, ऐसे इच्छुक साधकों के लिए क्रम दीक्षा का अवसर प्राप्त होगा।”