केरल तंत्र

केरलाख्यमतम् चैकम् काश्मीरं तु द्वितीयकम् |
गौडसंज्ञमं तृतीयम् स्यान्मतं तु भावना विधौ ||
आदौ तु केरालं देवी शुद्धं सर्वेशु सम्मतं |

शक्ति‌संगम तंत्र
(तृतीयो भागः सुंदरी खंडः तृतीय पाटलः)

हिन्दू तंत्र में तीन संप्रदाय अथवा मठ हैं। वे हैं केरल, कश्मीर और बंगाल संप्रदाय । केरल तंत्र शुद्ध (सात्त्विक) है और उसका आचरण सर्व सामान्य जनता में माननीय है ।
शक्ति संगम तंत्र (अन्य आगमी ग्रंथों में भी इन्हें तंत्र  की तीन प्रमुख शाखाओं का स्थान दिया गया है )

केरल ब्राह्मणों द्वारा आचरण किए जाने वाले श्रीविद्या तंत्र पद्धती का, श्रीविद्या पीडम क्रमशः पालन करती है। यह पद्धती दक्षिणाचार प्रधान है।
वामाचार और मिश्राचार पद्धति भी केरल में प्रचलित हैं। द्रविड कौल पद्धति, कश्मीर/गौड पद्धति और केरल पद्धति का मिश्रण, वैदिक पद्धति, और कई अन्य मूल पद्धतियों का उपांतरण ,  केरल की कुछ अन्य श्रीविद्या तंत्र पद्धतियां हैं।

भारत के तांत्रिक पद्धतियों में केरल तंत्र का महत्त्व का स्थान है। तीनों तंत्र पद्धतियों में से केरल तंत्र सबसे निगूढ माना जाता है और इस पद्धति से संबंधित ग्रंथ भी दुर्लभ हैं। इन तीनों प्रचलित तंत्र पद्धतियों में विभिन्नताओं का विवरण, शक्ति संगम तंत्र – सुंदरी खंड में दिया गया है।

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