तंत्र गुरु परंपरा

हमारे श्री गुरु – श्री युगनांदनाथ (श्री जितेश सत्यन जी) के प्रमुख गुरु, मंत्र विद्या पीडम् के अध्यक्ष ब्रह्मश्री टी डी पी नंबूदिरी हैं। ब्रह्मश्री टी डी पी नंबूदिरी मंत्र विद्या पीडम के तंत्राचार्य, ब्रह्मश्री दामोदरारू नारायणरारू जी और देवी अंतरजनम जी के सुपुत्र हैं। मंत्र विद्या पीडम, केरल में गुरुकुल परंपरा अभ्यास क्रम के लिए प्रचलित है। मंत्र विद्या पीडम साधकों को , केरल देवस्वोम बोर्ड मान्यता प्राप्त पूजा, योग, संस्कृत, वास्तु, ज्योतिष, इत्यादि शास्त्रों में ज्ञान अर्जित कराती है।गुरुजी को श्रीविद्या में मार्गदर्शन करने के अलावा ब्रह्मश्री टी डी पी नंबूदिरी ने गुरुजी को शक्ति कलश अभिषेक और श्रीविद्या राज्नी जैसे अति रहस्यमय विद्याओं में दीक्षित किया है।

गुरुजी ने वैदिक संप्रदाय में प्रचलित मिश्र वैदिक पद्धति का शिक्षण (जो तमिलनाडु और कर्नाटक श्रीविद्या मंदिरों में अनुसरित किया जाता है ), ब्रह्मश्री रामकृष्ण भट जी से अर्जित किया है।भट गुरुजी श्रीधर स्वामी जी के शिष्य श्री गुरुदास स्वामी के शिष्य हैं।गुरुजी को भट गुरुजी ने अति दुर्लभ मूकांबिका तंत्र का शिक्षण भी प्रदान किया है, जो श्रीविद्या तंत्र पद्धति में किंचित साधकों को ही प्राप्त है।

कालियार तांत्रिक विद्या पीठ के  श्री रतीश आचार्य जी से गुरुजी ने द्राविड कौल वाम मार्ग पद्धति में ज्ञान अर्जित किया है।
रतीश आचार्य जी ने अनेक गुरोजनों से साधनाओं का पठन किया है और द्राविड मार्ग में दक्षिणामूर्ति तंत्र विद्यालय के श्री रेजी दक्षिणामूर्ति जी से द्रविड़ मार्ग का शिक्षण प्राप्त  किया है। रतीश जी ने गुरुजी को द्रविड़ मात्रिकं और द्रविड़ ज्योतिष मार्ग भी सिखाए हैं।पनिक्कर कलरी पीठ के प्रकाशन गुरक्कल से गुरुजी ने कलरी और योग के अलावा सिद्ध-योग और तंत्र साधना भी सीखी है ।

समय मार्ग में गुरुजी को अवधूत वेणुगोपाल जी ने दीक्षित किया है। वेणुगोपाल जी बालकृष्ण नाथ जी के शिष्य हैं, जिनके गुरु श्री भैरवानन्द जी थे। अवधूत जी श्रीविद्या परम्परा में समयाचार पद्धति का अनुसरण करते हैं और उनका शिक्षा क्रम हंस विद्या पर आधारित परा साधना है।

गुरुजी ने इन सारी विद्याओं की शिक्षा, प्रत्यक्ष रूप में गुरु शिष्य पद्धति से ग्रहण कीं है ।इसके अलावा गुरुजी को कौल-मिश्र पद्धति में मॅन्ब्लंडर के श्री रवी जी और मेधा योग के श्री कृष्ण जी से ऑनलाइन पठन का अवसर प्राप्त हुआ है। इन दोनों गुरुवर्यों से गुरुजी को विविध देवताओं के जप साधना के अलावा श्री चक्र पूजा सीखने का अवसर भी प्राप्त हुआ है।रवी जी ने, जो साधारण तौर पर केवल जप का सुझाव देते हैं, गुरुजी को श्री चक्र पूजा विधी का ज्ञान संपादन किया , और  उन्हें केरल तंत्र के और पद्धतियों को प्रत्यक्ष गुरु से सीखने का प्रोत्साहन भी दिया।

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