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दिनचर्या (नित्य क्रम), तत्त्व शुद्धी / पंच अमर योग, नाडी एवं प्राण योग, शड़ाधार एवं षोडश आधार , अष्ट कुंभक, दश मुद्रा और अंत में प्रणव और पंचाक्षरी साधना
गुरु , गणपती एवं इष्ट देवता साधना, शड़ाधार साधना, पर प्रसाद विद्या, देवी बाला – आंतरिक जप, पूजा, होम & तर्पण (त्रिपुर बाला विद्या (त्रयाक्षरी), बाला परमेश्वरी विद्या (शड़ाक्षरी) & योग बाला विद्या (नवाक्षरी))
व्योम पंचक विद्या , ललिता साधना ( पंचदशी विद्या आधारित) , वामकेश्वरी विद्या & चन्द्र विद्या । चन्द्र विद्या में मेरु प्रस्थारा , कैलाश प्रस्थार, एवं भू प्रस्थार सिखाया जाता है जिसमें नित्या से संबंधित चन्द्र कला के अंगों का भी समावेश है।
यहां षोडशी विद्या का प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें समावेश है इडा और पिंगला के 16 चक्र 16 नित्याओं के लिए , सुषुम्ना के 28 चक्र षोडशी के लिए। अंत में काम कला विद्या का प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें निम्नलिखित तीन विद्याओं का समावेश है
(जाग्रत – जाग्रत )- जिसका अंग विद्या परा विद्या है
(जाग्रत – स्वप्न) – जिसका अंग विद्या पंच कूट पंचमी विद्या है
(जाग्रत – सुशुप्ती) – जिसका अंग विद्या पंच आकाश विद्या है