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जिसमें शूलिनी दुर्गा/महासुदर्षण, काली, शास्ता, उच्छिष्ट गणपती, अघोर, प्रत्यंगिरा, वाराही, स्वर्णाकर्षण भैरव, सरबेश्वर, नृसिंह, और अन्य /इष्ट देवताओं का पूजा / होम विधी सिखाया जाता है ।
जैसे दश महाविद्या, नवदुर्गा, अष्टभैरव, सप्तमातृका, नवग्रह, पंचवाराही, नित्यादेवियों का पूजा/होम क्रम
जैसे वास्तु बली, विशिष्ट यंत्रों का निर्माण और उर्जीकरण, नागदेवता पूजा,पितृ बली, पितृ पूजा, तिलक हवन, गुरुथी पूजा, पितृ दोष शान्ती, बाधा उच्चाड़न।
किसी ईष्ट देवता की आंतरिक पूजा जिसमें क्रमशः पीठ पूजा , मूर्ति पूजा, मानस पूजा , समर्पण विधि पूर्णतः आंतरिक पद्धति में सिखाया जाता है जिसमें किसी बाह्य वस्तुओं का समावेश नहीं होता।
श्रीविद्या से जुड़े दश महाविद्या आंतरिक तंत्र साधना , श्रीविद्या के परिवार देवताओं में से किसी उपांग देवता योग साधना – श्रीविद्या राज्नी , मातंगी, अश्वारूढ़ , संपत्करी, वाराही, प्रत्यंगिरा, और अन्य विद्याएं जैसे महा याग , नाभि विद्या , नवांग साधना सिखाया जाता है। विद्या पठन के पूर्व साधकों की परिपक्वता और उनके पार्श्वभूमी की जांच पड़ताल की जाता है।
अन्य श्रीविद्या संप्रदाय से जुडे साधकों को श्रीविद्या तंत्र के विस्तृत पाठ्यक्रम से कुछ विशेष पूजा होमादी क्रम सिखाया जाता है जैसे अन्य श्रीविद्या परंपरा के जाप करने वाले साधक को बाला विद्या , तंत्र योग प्रशिक्षक को परा प्रसाद विद्या सिखाया जा सकता है।