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पहला चरण स्थूल देह को योगिक देह में बदलने का है। इसमें आसन, बंध, मुद्रा, प्राणायाम, ध्यान और धारणा जैसे अभ्यास शामिल होते हैं। ये ऊर्जा मार्गों को शुद्ध करते हैं, आसन को स्थिर करते हैं, एकाग्रता बढ़ाते हैं, श्वास को संतुलित करते हैं और योगिक अनुशासन स्थापित करते हैं।
इसके बाद योग देह को सिद्ध देह में रूपांतरित किया जाता है। यह नाड़ी, चक्र, कुण्डलिनी और आधारों से जुड़े अभ्यासों द्वारा होता है। कुण्डलिनी ऊर्जा का ऊपर की ओर प्रवाह मानसिक परिपक्वता लाता है और साधक को सिद्धियाँ प्रदान करता है।
इस चरण में प्राणव योग, व-सी योग और हंस योग जैसे मंत्र-साधना आधारित अभ्यासों से शरीर की वास्तविक क्षमताओं को जागृत किया जाता है और ऊर्जा को विशिष्ट कार्यों हेतु निर्देशित किया जाता है।
अंत में मंत्र देह को दिव्य देह में रूपांतरित किया जाता है। इसके लिए ज्योति योग, बिंदु योग, व्योम योग और तुरीय योग जैसे अभ्यास किए जाते हैं, जो आत्मा को शुद्ध चैतन्य रूप में प्रकट करते हैं और साधक को दिव्यता की अनुभूति कराते हैं।